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Rānī Nāgaphanī kī kahānī (Hindi Edition)

Rānī Nāgaphanī kī kahānī (Hindi Edition)

Regular price Rs. 125.00
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यह एक व्यंग्य कथा है। ‘फेंटजी’ के माध्यम से लेखक ने आज की वास्तविकता के कुछ पहलुओं की आलोचना की है। ‘फेंटेजी’ का माध्यम कुछ सुविधाओं के कारण चुना गया है। लोक-मानस से परंपरागत संगति के कारण ‘फेंटेजी’ की व्यंजना प्रभावकारी होती है इसमें स्वतंत्रता भी काफी होती है और कार्यकारण संबंध का शिकंजा ढीला होता है। यों इनकी सीमाएं भी बहुत हैं। लेखक ‘शाश्वत-साहित्य’ रचने का संकल्प करके लिखने नहीं बैठता। जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं होता, वह अनंतकाल के प्रति कैसे हो लेता है? लेखक पर ‘शिष्ट हास्य’ का रिमार्क चिपका रहा है। जो उन्हे हास्यापद लगता है। महज हँसाने के लिए लेखक ने शायद ही कभी कुछ लिखा हो और शिष्ट तो वह कभी रहे ही नहीं। यह पुस्तक पाठक के घाव को कुरेदने की एक कोशिश है जो उन्हें ही दर्द देगी जिनके अंदर खौट है।

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