Manoj Kumar Srivastava Kuch Apni Kuch Jag Ki Hindi Edition
Manoj Kumar Srivastava Kuch Apni Kuch Jag Ki Hindi Edition
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सभी के मन मस्तिष्क में हजारों सवाल एक प्रश्नचिन्ह लिये आते हैं और मुँह बाये आपसे तो कभी अपने आपसे उन सवालोँ का जवाब माँगते हैं। जिनके जवाब हम तुरन्त दे देते हैं यानि जिनके उत्तर से हम खुद सन्तुष्ट हो जाते है तो वो प्रश्न और विचार कुछ समय बाद स्वम् विस्मृत हो जाते हैं। जिन प्रश्नों के उत्तर हम दे नहीं पाते या यूँ कहें की हमे सुझाते नहीं वो हमे कहीं न कहीं उद्देलित करते रहते हैं। परेशान करते रहते हैं। ये सामाजिक मानसिक पारिवारिक अनकहे और अनसुलझे प्रश्न ही कविता हैं जब वो अपने हासिल को पाने के लिये शब्दोँ का सहारा लेकर काग़ज़ पर आ जाती है। इस धरा का प्रत्येक व्यक्ति दो रूप से जीवन जीता है। एक व्यक्तिगत और दूसरा सामाजिक। कोई भी व्यक्ति एकरूपीय हो ही नहीं सकता। जब तक वो व्यक्तिगत जीवन मंथन नहीं करेगा वो सामाजिक हो नहीं सकता। कुछ अपनी कुछ सबकी, वो वैचारिक व्यक्तिगत एवम सामाजिक अनुभूति है ,वो अनुभव हैं जो कभी मन ने समाज से पाए हैं तो कभी समाज के मन पर अपने अमिट प्रभाव छोड़ कर अपना अस्तित्व तलाशते रहे।
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