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Narendra Kohli Dharm - Mahasamar-4 हिंदी संस्करण

Narendra Kohli Dharm - Mahasamar-4 हिंदी संस्करण

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 इस उपन्यास में उन्होंने जीवन को उसकी सम्पूर्ण विछता के साथ अत्यन्त मौलिक ढंग से प्रस्तुत किया है। जीतने वास्तविक रूप से सम्बन्धित प्रश्नों का सनाचान दे अनुभूति और तर्क के आधार पर देते हैं। इस कृति में आप 'महाभारत' पढ़ने वैठेंगे और अपना जीवन पढ़ कर उठेंगे। प्रसिद्ध रूसी भाषाशास्त्री तातियाना ओरांस्काया इसकी तुलना लेव ताल्स्ताय के उपन्यास 'युद्ध और शान्ति' से करती हैं।

 

नरेन्द्र कोहली

 

'महाभारत' की कथा पर आधृत उपन्यास 'महासमर' का यह चौथा खण्ड है- 'धर्म'!

 

पाण्डवों को राज्य के रूप में खाण्डवप्रस्थ मिला है, जहाँ न कृषि है, न व्यापार। सम्पूर्ण क्षेत्र में अराजकता फैली हुई है। अपराधियों और महाशक्तियों की वाहिनियाँ अपने षड्यन्त्रों में लगी हुई हैं.... और उनका कवच है खाण्डव-वन, जिसकी रक्षा स्वयं इन्द्र कर रहा है। युधिष्ठिर के सम्मुख धर्म-संकट

 

है। वह नृशंस नहीं होना चाहता; किन्तु आनृशंसता से प्रजा की रक्षा नहीं हो सकती। पाण्डवों के पास इतने साधन भी नहीं हैं कि वे इन्द्र-रक्षित खाण्डव-वन को नष्ट कर, उसमें छिपे अपराधियों को दण्डित कर सकें। उधर अर्जुन के सम्मुख अपना धर्म-संकट है। उसे राज-धर्म का पालन करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा भंग करनी पड़ती है और बारह वर्षों का ब्रह्मचर्य पूर्ण वनवास स्वीकार करना पड़ता है। किन्तु इन्हीं बारह वर्षों में अर्जुन ने उलूपी, चित्रांगदा और सुभद्रा से विवाह किये। न उसने ब्रह्मचर्ष कर पालन किया, न वह पूर्णतः वनवासी ही रहा। क्या उसने अपने धर्म का निर्वाह किया? धर्म को कृष्ण से अधिक और कौन जानता है?... अर्जुन और कृष्ण ने अग्नि के साथ मिलकर, खाण्डव-वन को नष्ट कर डाला। क्या यह धर्म था? इस हिंसा की अनुमति युधिष्ठिर ने कैसे दे दी। और फिर राजसूय यया। क्या आवश्यकता थी, उस राजसूय यज्ञ की। जरासन्ध जैसा पराक्रमी राजा भीन के हाथों कैसे मारा गया, और उसका पुत्र क्यों खड़ा देखता रहा? अन्त में हस्तिनापुर में होने वाली घृत-सभा। पर्मराज होकर युधिष्ठिर ने घृत क्यों खेता? अपने भाइयों और पानी को धूत में हारकर किस वर्ष का निर्वाह कर रहा था धर्मराज? द्रौपदी की रक्षा किसने की? कृष्ण उस सभा में किस रूप में उपस्थित थे। देने ही अनेक प्रश्नों के मध्य से होकर गुजरती है 'धर्म' की कथा। यह उपन्यास केवस्याओं की मुत्यियी सुलझाता है बल्कि उस युग कर, उस युग के परित्रों का तथा उनके धर्म का विश्लेषण भी करता है। हम आश्वस्त है कि इस उपन्यासको करती दुष्टिकोण अधिक विज्ञहोकर रहेगा 

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